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झारखंड में कोयले की कहानी एक पुरानी और जटिल है।

झारखंड कोयले का एक प्रमुख उत्पादक राज्य है, और यहाँ के कोयले की खनन का इतिहास सदियों पुराना है।

कोयले की खोज

झारखंड में कोयले की खोज 18वीं शताब्दी में हुई थी। उस समय, यहाँ के कोयले का उपयोग मुख्य रूप से धातु निर्माण और अन्य उद्योगों में किया जाता था।

कोयला खनन का विकास

19वीं शताब्दी में, झारखंड में कोयला खनन का विकास हुआ। इस समय, यहाँ के कोयले का निर्यात भी शुरू हुआ। कोयला खनन के विकास के साथ-साथ, यहाँ के आदिवासी समुदायों को अपनी जमीन और जीवनशैली से वंचित होना पड़ा।

स्वतंत्रता के बाद

भारत की स्वतंत्रता के बाद, झारखंड में कोयला खनन का राष्ट्रीयकरण हुआ। इस समय, यहाँ के कोयले का उपयोग मुख्य रूप से बिजली उत्पादन और उद्योगों में किया जाने लगा।

वर्तमान स्थिति

आज, झारखंड में कोयला खनन एक महत्वपूर्ण उद्योग है। यहाँ के कोयले का उपयोग मुख्य रूप से बिजली उत्पादन, इस्पात निर्माण और अन्य उद्योगों में किया जाता है। हालांकि, कोयला खनन के कारण यहाँ के आदिवासी समुदायों और पर्यावरण को भी नुकसान हो रहा है।

चुनौतियाँ और भविष्य

झारखंड में कोयला खनन के भविष्य को लेकर कई चुनौतियाँ हैं। इनमें पर्यावरण संरक्षण, आदिवासी समुदायों के अधिकारों की रक्षा और कोयला खनन के सुरक्षा मानकों का पालन शामिल है। इसके अलावा, झारखंड में कोयला खनन के विकल्पों की तलाश भी आवश्यक है, ताकि यहाँ के पर्यावरण और समुदायों को नुकसान से बचाया जा सके।

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