Saranda : वर्ष 2011 की जनसंख्या रिपोर्ट के अनुसार 50 हजार की आबादी सारंडा जंगल में रहती है। वर्तमान में यह आबादी 75 हजार से एक लाख तक होने की उम्मीद है। सरकार की चिंता है कि इस आबादी को विस्थापन से कैसे बचाया जाये, वन्य अभयारण्य बनाये जाने की प्रक्रिया में इस बड़ी आबादी के बेदखल होने की आशंका है।
सारंडा जंगल को वन्य अभयारण्य बनाने के प्रस्ताव पर स्थानीय लोगों की राय लेने के लिए झारखंड सरकार के मंत्रियों की टीम ने मंगलवार को छोटानागरा मचानगुटू मैदान में आमसभा की. मौके पर मौजूद ग्रामीणों ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव का विरोध किया. ग्रामीणों ने कहा कि हमारा जीवन सारंडा जंगल पर निर्भर है। अगर इसे वन्य अभयारण्य घोषित किया, तो पाबंदियां लगेंगी। इनसे हमारी आजीविका बुरी तरह प्रभावित होगी. जानवरों की चिंता हो रही है, लेकिन हमारी चिंता नहीं कर रहे हैं. आदिवासियों का कहना था कि हम हैं, तो जंगल बचा है. इसके बाद वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने कहा कि सरकार स्थानीय लोगों की राय और हित में ही निर्णय लेगी।
राधाकृष्ण किशोर की अध्यक्षता में पहुंची मंत्रियों की टीम
वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर की अध्यक्षता में मंत्रियों की टीम सारंडा पहुंची थी। इस टीम में ग्रामीण विकास मंत्री दीपिका पांडे सिंह, श्रम मंत्री संजय प्रसाद यादव, कल्याण मंत्री चमरा लिंडा और परिवहन मंत्री दीपक बिरुवा शामिल थे। टीम ने क्षेत्र के मानकी, मुंडा और ग्रामीणों की राय जानी. सभा में हजारों ग्रामीण, पंचायत प्रतिनिधि, मुंडा-मानकी, सामाजिक व राजनीतिक संगठन और कई जनप्रतिनिधि शामिल। मंत्रियों ने संबंधित विभागीय अधिकारियों के साथ बैठक की. उनसे अद्यतन जानकारी मांगी गयी। अधिकारियों के साथ सारंडा को वन्य क्षेत्र घोषित किये जाने की पूरी प्रक्रिया पर चर्चा हुई। जंगल क्षेत्र में माइनिंग और पुलिस कैंप से संबंधित जानकारी ली गयी।
लगभग एक लाख की आबादी है जंगल में
अधिकारियों ने बताया कि 2011 की जनसंख्या रिपोर्ट के अनुसार 50 हजार की आबादी सारंडा जंगल में रहती है. वर्तमान में यह आबादी 75 हजार से एक लाख तक होने की उम्मीद है. सरकार की चिंता है कि इस आबादी को विस्थापन से कैसे बचाया जाये. वन्य अभयारण्य बनाये जाने की प्रक्रिया में इस बड़ी आबादी के बेदखल होने की आशंका है।
अधिकार की गारंटी नहीं हुई, तो तीर चलेगा – ग्रामीण
आमसभा में ग्रामीण परंपरागत अधिकार लेकर पहुंचे थे. कुछ लोग कुदाल और तीर-धनुष के साथ पहुंचे थे. इनका कहना था कि हमारा अधिकार सुरक्षित रहे. अधिकार की गारंटी नहीं हुई, तो तीर चलेगा. ग्रामीण वन्य विभाग के अधिकारियों से खासे नाराज थे. ग्रामीणों का कहना था कि यहां कभी ग्रामसभा नहीं हुई. वन्य अभयारण्य बनाने की बात कहां से आ गयी. ग्रामीणों ने कहा कि डीएमएफटी फंड से पैसे खर्च हो रहे हैं, लेकिन अस्पतालों में बेड नहीं हैं। पोंगा नदी पर अब तक पुल नहीं है, आवागमन में परेशानी हो रही है।
